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वीरदादा जसराज की पुण्यतिथि: गौभक्ति की अनुपम कथा

भारत भूमि पर गौ माता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अनेक वीरों को वंदन। 22 जनवरी का दिन दादा जसराज का महाप्रयाण दिवस है। प्रचंड प्रभावशाली वीर योद्धा महापुरुष दादा जसराज ने 22-01-1058 को गौ रक्षा के लिए शहादत दी। इस दिन को लोहाणा (लोहराणा) समाज द्वारा आशीर्वाद दिवस और सामूहिक प्रसाद-भोजन के रूप में मनाया जाता है। इस आयोजन में सभी जाति और धर्म के लोग बिना भेदभाव के शामिल होकर दादा जसराज को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके बलिदान को गौरवपूर्वक याद करते हैं।
जब-जब इस धरा पर अधर्मी और विधर्मी गौमाताओं पर अत्याचार करते हैं, तो उनके विनाश के लिए दादा जसराज जैसे वीर पुरुषों का जन्म होता है। गौहत्या रोकने और समाज में फैल रही अराजकता को समाप्त करने के लिए वस्तुपाल और माता रन्नादे ठकरार की गोद में दादा का जन्म हुआ। 11वीं सदी के मध्य तक लोहराणा (लोहाणा) समाज ने संगठित होकर विधर्मी दुश्मनों को परास्त किया। हिंगलाज माताजी की उपासना करने वाले इन लोगों ने धर्म और संस्कृति की रक्षा की।
दादा जसराज की जन्मभूमि लाहौर थी। अफगानियों ने लोहराणा समाज के संगठित योद्धाओं के सामने हार मान ली, क्योंकि 11वीं सदी में दादा जसराज जैसे नेतृत्वकर्ता ने लोहाणाओं को एकजुट किया। तक्षशिला, लेह, लद्दाख, साम्बकोट, बीजकोट और उंडकोट जैसे क्षेत्रों की सीमाओं की रक्षा लोहाणाओं द्वारा की जाती थी।
भारत की समृद्धि और धार्मिक गौरव से प्रभावित होकर अरब, तुर्क और ईरानी शासकों ने बार-बार भारत पर लूट के इरादे से हमले किए। लोहाणा योद्धाओं ने तीन सदी तक सीमाओं की रक्षा करते हुए भारतीय संस्कृति की अप्रतिम रक्षा की।
दादा वस्तुपाल और उनकी सेना ने महमद गजनी को सीमाओं से खदेड़ दिया। गजनी के पुत्र जलालुद्दीन को भी वस्तुपाल और हरपाल ने हराकर भगा दिया। दुश्मनों ने छल से हरपाल की हत्या कर दी। हरपाल की सहायता के लिए वीर योद्धा वच्छराज ने अपनी जान की बाजी लगाई और दुश्मन फीरोजखान का वध किया।
दुश्मनों ने रात के अंधेरे में सिंधु क्षेत्र के किले पर छापा मारा और गौमाताओं को भी अपनी सेना में शामिल कर लिया। गौमाताओं की रक्षा के लिए हुए संघर्ष में लोहाणा महिलाएं भी युद्ध में कूद पड़ीं। लोहाराणी हरकौर, बिजल, ब्रजकौर, लक्ष्मी और जयकुंवर के नेतृत्व में लोहाणा महिलाओं ने दुश्मनों को हराया और अपने वीर पुरुषों की शहादत का बदला लिया।
दादा वस्तुपाल और रन्नादे ठकरार के वीर पुत्र दादा जसराज का पालन-पोषण ऐसे परिवार में हुआ, जहां बलिदान और शौर्य की परंपरा थी। मात्र 16 वर्ष की आयु में दादा जसराज का राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने अपनी प्रजा को समर्पित शासन प्रणाली स्थापित की। राजगुरु स्वामी रत्नेश्वरजी ने उन्हें शासन और युद्ध की शिक्षा दी।
दादा जसराज की वीरता से तंग आकर अफघानियों ने उनके सिर के लिए दो लाख अशर्फियों का इनाम घोषित किया। दादा जसराज अपने विश्वासपात्र सिंधु शर्मा के साथ काबुल दरबार पहुंचे और दुश्मन नरेश को हराकर लाहौर का ध्वज फहराया। यह घटना इतिहास में वीरता की अद्वितीय मिसाल है।
२४ वर्ष की आयु में उंडकोट के राजा रघुपाल की पुत्री सूर्यकुमारी के साथ वसंत पंचमी के दिन दादा जसराज का विवाह तय हुआ था। इस समाचार से परेशान विधर्मियों, ईरानियों, अरबों और गीज़नियों ने एकत्र होकर एक नापाक साज़िश रची। विवाह के दिन गौमाताओं के समूह को लुटेरों के भेष में लूट लिया और गौहत्या करने लगे। इससे पूरे क्षेत्र और प्रदेश में हिंदुओं की भावनाएं अत्यधिक आहत हुईं। लेकिन दादा के दाहिने हाथ समान सिंधु शर्मा (जो आज धरादेव के रूप में पूजे जाते हैं) ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि दादा जसराज के विवाह में कोई बाधा न आए, निजी तौर पर कुछ चुने हुए सैनिकों के साथ गौ-लुटेरों का पीछा किया और गौमाताओं को छुड़ाया। लेकिन तरंगाई नदी की खाई के पास के पहाड़ी जंगल में समशुदीन ने छल-कपट की साजिश रचकर पीछे से हमला किया, जिसमें सिंधु शर्मा अपना आत्मरक्षा नहीं कर सके और वीरगति को प्राप्त हुए। विधर्मियों ने सिंधु शर्मा के शव को घोड़े पर लटकाकर घायल घोड़े के साथ वहां भेज दिया जहां दादा का विवाह मंडप चल रहा था। यह दृश्य देखकर दादा व्यथित और क्रोधित हुए। उन्होंने मंडप के बीच में पहना हुआ साफा उतारकर, ससुराल पक्ष से विदा ली और अपने प्रिय अश्व लालु के साथ, तलवार, भाला, ढाल और कवच धारण कर युद्ध के लिए निकल पड़े। दादा ने मुख्य साजिशकर्ता समशुदीन का अंत किया। दुश्मन दल ने फिर से छल-कपट और साजिश रची। एक विधर्मी ने भारतीय सैनिकों का नकली वेश धारण कर ठाकुर के भेष में दादा के पास पहुंचकर पीठ पीछे से प्रपंचपूर्वक वार किया और दादा के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। दादा का कटा हुआ धड़ दो दिन तक लड़ता रहा। इस परमशक्ति के अवतार को शांत करने के लिए, धड़ पर पवित्र जल छिड़का गया। लोहाराणा सरदारों ने प्रतिज्ञा की, “अब से लोहराणा विवाह के समय सफेद पगड़ी धारण करेंगे और उस पर कंकू-चावल के छिटे डालेंगे।” लोहाराणियों ने सफेद पानेतर पहनकर दादा जसराज की शहादत का अंतर से शोक मनाया। तब जाकर दादा का धड़ शांत हुआ।
ऐसे कल्याणकारी, परम पावन, गौभक्त और लोहाणा समाज के इष्टदेव दादा जसराज का 22-01-1058 के दिन देहांत हुआ। दादा का प्रिय अश्व लालु, प्रिय सेनापति सिंधु शर्मा और उसके बाद दादा की पूजा की जाती है। आज के दिन गौमाता की सेवा करना, गायों के उत्थान के लिए कार्य करना, इन तीनों विभूतियों का तर्पण करने के समान है। धन्य हैं भारत के गौभक्त शहीद। आज भी लोहाणा समाज के कई नामी और अनाम गौमाता की सेवा-पूजा में लगे हुए हैं। ऐसे गौप्रेमी, गौभक्त और गौसेवकों को लाख-लाख वंदन और दादा जसराज को नमन।
।। वंदे गौ मातरम् ।।

डॉ. वल्लभभाई कथीरिया
अध्यक्ष – GCCI,
पूर्व मंत्री- भारत सरकार,
पूर्व अध्यक्ष – राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ।

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