ग्लोबल कन्फेडरेशन ऑफ काऊ बेस्ड इंडस्ट्रीज़ (GCCI) द्वारा “वैदिक होली: पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य संवर्धन” पर वेबिनार का दिनांक 10 मार्च 2025 आयोजन किया गया ।

भारत की पारंपरिक होली को गौ संरक्षण से जोड़ा जाए – श्री अजीत प्रसाद महापात्रा
गौमय स्नान और प्राकृतिक रंगों को अपनाने की अपील – GCCI के संस्थापक एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. वल्लभभाई कथीरिया
ग्लोबल कन्फेडरेशन ऑफ काऊ बेस्ड इंडस्ट्रीज़ (GCCI) द्वारा ‘वैदिक होली: पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य संवर्धन’ विषय पर एक महत्वपूर्ण वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में विभिन्न राज्यों के गौ सेवा आयोगों के अध्यक्षों, पूर्व अध्यक्षों, ने भाग लिया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक भारतीय पद्धति के अनुसार पर्यावरण अनुकूल एवं स्वास्थ्यवर्धक होली उत्सव मनाने को प्रोत्साहित करना था।
वेबिनार की शुरुआत GCCI के निदेशक श्री मितल खेतानी द्वारा स्वागत प्रवचन से हुई, जिसमें उन्होंने सभी अतिथियों का हार्दिक अभिनंदन किया और वैदिक होली के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह वेबिनार केवल एक विचार-विमर्श मंच नहीं, बल्कि भारतीय परंपराओं को पुनर्जीवित करने और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने का एक प्रयास है। उन्होंने सभी गौ सेवा आयोगों, गौशालाओं और पर्यावरण प्रेमियों से अपील की कि वे इस पवित्र अभियान को पूरे भारत में फैलाने में सहयोग करें।
वेबिनार में अखिल भारतीय गौ सेवा गतिविधि (RSS) के संयोजक श्री अजीत प्रसाद महापात्रा ने कहा कि गाय हमारी सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और गोमय (गोबर) से निर्मित होली मनाना केवल धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी लाभकारी है। उन्होंने बताया कि गोबर के कंडों से होलिका दहन करने से वायुमंडल शुद्ध होता है, ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है और कार्बन उत्सर्जन नियंत्रित रहता है। उन्होंने सभी राज्यों से आग्रह किया कि वे गो आधारित होली को बढ़ावा दें और अधिक से अधिक गोशालाओं में इसे लागू करें।
हरियाणा गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री श्रवण कुमार गर्ग ने बताया कि हरियाणा में पिछले कुछ वर्षों से गोबर आधारित होलिका दहन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गौशालाओं को इस अभियान से जोड़कर एक नई अर्थव्यवस्था खड़ी की जा सकती है। हरियाणा गौ सेवा आयोग इस बार राज्य में 500 से अधिक स्थानों पर गो-काष्ठ के उपयोग से होलिका दहन सुनिश्चित कर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि हरियाणा में गौशालाओं को गोबर से बने उत्पादों की बिक्री हेतु सहायता प्रदान की जा रही है, जिससे गोशालाएं आत्मनिर्भर बनें।
उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री श्याम बिहारी गुप्ता ने अपने वक्तव्य में बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस वर्ष गौशालाओं में प्राकृतिक होली मनाने का निर्णय लिया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश की सभी गौशालाओं में रासायनिक रंगों के बजाय गोबर आधारित प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाएगा। उन्होंने कहा कि गेंदे के फूलों, चुकंदर और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से तैयार किए गए रंगों से होली खेली जाएगी, जिससे पर्यावरण को किसी भी प्रकार की हानि न हो।
छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री विशेषर सिंह पटेल ने बताया कि छत्तीसगढ़ में पारंपरिक रूप से पलाश के फूलों और गोबर से बनी लकड़ियों का उपयोग होलिका दहन में किया जाता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग ने इस बार 103 गौशालाओं में गो-काष्ठ उत्पादन की योजना बनाई है, जिससे लोग आसानी से गौ आधारित सामग्री प्राप्त कर सकें। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि छत्तीसगढ़ सरकार गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोबर खरीद योजना चला रही है, जिससे गौशालाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।
महाराष्ट्र गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री शेखर मुंदडा ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने गौ माता को ‘राज्य माता’ का दर्जा दिया है, जिससे गौ आधारित उत्पादों को सरकारी मान्यता मिलने में आसानी हो रही है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में 200 से अधिक गौशालाओं में गो-काष्ठ मशीनें लगाई जा चुकी हैं, जिससे होली और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में गोबर आधारित लकड़ियों का उपयोग किया जा सके। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में गोबर से ‘धुली वंदन’ नामक होली उत्सव मनाया जाता है, जिसमें लोग रंगों के बजाय गोबर से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं।
उत्तराखंड गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री पंडित राजेन्द्र अंथवाल ने बताया कि उत्तराखंड में बद्री गायों की नस्ल संरक्षण को लेकर सरकार सक्रिय रूप से कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि गौशालाओं को होली जैसे त्योहारों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के गांवों में अब भी होलिका दहन के बाद उसकी राख को घरों में सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है, जो एक प्राचीन परंपरा है।
पंजाब गौ सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री सचिन शर्मा ने कहा कि गौ आधारित उत्पादों का प्रयोग केवल होली तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे पूरे वर्ष बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने बताया कि पंजाब में कई स्थानों पर गोबर आधारित ब्लॉक्स से शवदाह गृह बनाए जा रहे हैं, जिससे लकड़ी की खपत कम हो रही है। उन्होंने कहा कि होली के समय भी गोबर से बने उत्पादों को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश गौ सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री अशोक शर्मा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक होली पहले ही प्राकृतिक होती थी, जहां फूलों के रंगों का उपयोग किया जाता था। उन्होंने बताया कि गौशालाओं के माध्यम से इस परंपरा को फिर से पुनर्जीवित किया जा रहा है, जिससे स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ भी मिल सके। उन्होंने कहा कि हिमाचल सरकार इस बार गौशालाओं में प्राकृतिक होली मनाने के लिए एक विशेष योजना बना रही है।
GCCI के संस्थापक एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि वैदिक होली का उद्देश्य केवल एक पारंपरिक त्योहार मनाना नहीं, बल्कि इसे पर्यावरण संरक्षण और गौसंवर्धन का माध्यम बनाना है। उन्होंने बताया कि गाय के पंचगव्य (गोबर, गोमूत्र, दूध, दही, घी) में से गोबर और गोमूत्र का उपयोग होली में किया जाए तो यह एक स्वस्थ, प्राकृतिक और पर्यावरण हितैषी उत्सव बन सकता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि होली के दौरान रासायनिक रंगों के स्थान पर प्राकृतिक रंगों और गोबर से बने उत्पादों का उपयोग किया जाए। उन्होंने गौ सेवा आयोगों से अपील की कि होली पर गो-काष्ठ (गोबर से बनी लकड़ियों) के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए, जिससे पेड़ों की कटाई रोकी जा सके और गोशालाओं की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो। उन्होंने कहा कि गो आधारित दीपक, अगरबत्ती, गुलाल और धूपबत्ती जैसी वस्तुएं भी होली उत्सव में इस्तेमाल की जानी चाहिए।
डॉ. कथीरिया ने यह भी सुझाव दिया कि होली के बाद होलिका दहन की राख को खेतों में डालने से भूमि अधिक उपजाऊ होगी, जिससे प्राकृतिक खाद का निर्माण होगा और रासायनिक खादों की निर्भरता कम होगी। उन्होंने भारत में बरसाना की लट्ठमार होली, मथुरा-वृंदावन की फूलों की होली, पंजाब के आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला, महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश की रंग पंचमी, मणिपुर की याओसांग होली, केरल की मंजल कुली, बिहार-झारखंड की फाल्गुन पूर्णिमा, पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन का बसंत उत्सव और गोवा के शिगमो उत्सव जैसी विभिन्न परंपराओं का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि इन सभी उत्सवों को गौ आधारित बना दिया जाए, तो यह भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी एक क्रांतिकारी पहल होगी। उन्होंने गौमय स्नान और गौ फाग की परंपराओं को पुनर्जीवित करने पर बल दिया, जिसमें गौमूत्र और गोबर से होली खेलने से जल प्रदूषण को रोका जा सकता है और त्वचा रोगों से भी बचाव संभव है। इसके साथ ही उन्होंने होली के अवसर पर भक्तिमय भजनों और शास्त्रीय संगीत के आयोजन की भी अपील की, जिससे समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो और भारतीय संस्कृति को और अधिक सुदृढ़ किया जा सके।
वेबिनार का संचालन GCCI के निदेशक श्री पुरीष कुमार द्वारा किया गया, जिन्होंने अपने सहज एवं प्रभावी शैली में पूरे सत्र को सुव्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया। उन्होंने वक्ताओं को आमंत्रित करते हुए गौ आधारित होली के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सामाजिक लाभों को रेखांकित किया और बताया कि यह अभियान सिर्फ गौसंवर्धन तक सीमित नहीं, बल्कि समाज और पर्यावरण के स्वास्थ्य से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
कार्यक्रम के अंत में GCCI के निदेशक श्री अमिताभ भटनागर ने सभी अतिथियों और वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह वेबिनार वैदिक होली को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। उन्होंने सभी राज्यों के गौ सेवा आयोगों, गौशालाओं और सहभागियों से आग्रह किया कि वे इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाएं और गौ आधारित होली को भारत भर में एक अभियान का रूप दें।
अंत में सभी वक्ताओं ने एकमत से यह निर्णय लिया कि आने वाले वर्षों में गौ आधारित होली को भारत भर में लोकप्रिय बनाया जाएगा और सभी गौ सेवा आयोग इस दिशा में कार्य करेंगे। GCCI के संस्थापक डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने वेबिनार में भाग लेने वाले सभी गणमान्य व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया और सभी गौ प्रेमियों से आग्रह किया कि रासायनिक रंगों का त्याग कर प्राकृतिक एवं स्वास्थ्यवर्धक होली मनाएं।
अधिक जानकारी के लिए GCCI के जनरल सेक्रेटरी श्री मित्तलभाई खेताणी और तेजस चोटलिया से मो. 94269 18900, मीनाक्षी शर्मा मो. 83739 09295 पर संपर्क करें।