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“ जंगल की ज़मीन सिर्फ जंगल के लिए ”: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई, 2025 को एक ऐतिहासिक आदेश जारी करते हुए देशभर के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिया है कि वे विशेष जांच टीमें (SIT) गठित करें, जिनका कार्य आरक्षित वन भूमि पर हुए अवैध आवंटनों की गहन जांच करना होगा। यह आदेश पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक क्षेत्र में 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि के अवैध आवंटन और रिची रिच को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (RRCHS) को हस्तांतरित किए जाने से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया।

मुख्य बिंदु:

केवल वनों के लिए होगी वन भूमि का उपयोग — सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि आरक्षित वन भूमि का उपयोग अब से केवल वनों के संरक्षण और विकास के लिए ही किया जाएगा।
अवैध आवंटन की जांच — विशेष जांच टीमें यह जांच करेंगी कि कहीं राजस्व विभाग ने किसी संस्था या व्यक्ति को वह जमीन तो नहीं दे दी, जिसका उपयोग जंगलों से जुड़ा नहीं है।
जमीन की वापसी और मुआवजा वसूली — यदि कोई आरक्षित वन भूमि किसी के कब्जे में है, तो राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को तीन माह के भीतर उसे वापस लेकर वन विभाग को सौंपना होगा। यदि भूमि जनहित में वापस नहीं ली जा सकती, तो उसकी पूरी लागत वसूल की जाएगी और वह राशि वनों के विकास में खर्च की जाएगी।
पर्यावरण मंजूरी भी अवैध — सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई, 2007 को दी गई पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है।
समय सीमा — यह पूरी प्रक्रिया एक साल के भीतर पूरी की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति कृष्णन विनोद चंद्रन शामिल थे, ने यह फैसला सुनाया। यह आदेश देश में पर्यावरण संरक्षण, वनों की रक्षा और वनवासियों के अधिकारों को सशक्त बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

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