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गणेश चतुर्थी का पावन और पवित्र त्योहार गौमय (गोबर) से बने इको-फ्रेंडली गणेश के साथ मनाएं।

जी.सी.सी.आई के संस्थापक, भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री, राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने गाय के गोबर से निर्मित इको-फ्रेंडली श्री गणेशजी की प्रतिमा के पूरे देश में प्रचार-प्रसार का अभियान शुरू किया था। प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के आह्वान को स्वीकार करते हुए जी.सी.सी.आई द्वारा गोमय-गोबर से बनी गणेशजी की प्रतिमा स्थापना एवं पूजन के लिए अभियान के रूप में जनता जनार्दन से अनुरोध किया गया है कि प्रधानमंत्री जी के आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान को ध्यान में रखते हुए पूरे देश की गौशालाएं, युवा-महिला उद्योग, महिला स्वयं सहायता समूह, सामाजिक, धार्मिक संस्थाएं और गौसेवक भारतीय देशी गाय के गोबर से गणेशजी की विभिन्न आकारों में मूर्तियां बनाने के लिए आगे आएं और इस अभियान में जुड़ें । जी.सी.सी.आई गौ आधारित उद्योग-उत्पादन में वृद्धि के लिए लगातार काम कर रहा है। गणेश चतुर्थी का पवित्र त्योहार निकट आ रहा है, जी.सी.सी.आई द्वारा अपील की जाती है कि इस वर्ष भगवान गणेश की स्थापना पर्यावरण के अनुकूल अर्थात् इको-फ्रेंडली गौमय गणेश, यानी भारतीय देशी गाय के पवित्र गोबर से बनी गणेशजी की मूर्ति ही गणेश चतुर्थी के पावन पवित्र त्योहार पर खरीद कर मनाएं। सदियों से भारतीय परंपरा और आयुर्वेद में भारतीय देशी गाय के गोबर को शरीर और पर्यावरण दोनों का शुद्धिकरण करने वाला माना गया है। इसमें प्राकृतिक रूप से कीटाणुनाशक गुण होते हैं, जो वातावरण को शुद्ध, ऊर्जावान और स्वास्थ्यवर्धक बनाते हैं। हिन्दू शास्त्रों में गौ माता को जीवनदायिनी और कल्याणकारी माता के रूप में वर्णित किया गया है, जिनके उत्पाद मानव जाति के लिए आशीर्वाद स्वरूप हैं। गौमय से बनी गणेशजी की मूर्ति केवल भगवान का स्वरूप नहीं, बल्कि पवित्रता, समृद्धि और पर्यावरण सुरक्षा का जीवंत प्रतीक है। विसर्जन के समय ये मूर्तियां पानी में पूरी तरह विघटित हो जाती हैं और कोई जहरीला अवशेष नहीं छोड़तीं। प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) और रासायनिक रंगों से बनी मूर्तियों की तुलना में, गौमय गणेश न तो जलचर जीवों को नुकसान पहुंचाती है और न ही नदियों-तालाबों को प्रदूषित करती है। उल्टे यह प्राकृतिक खाद के रूप में पौधों को पोषण देती है और मिट्टी को सजीव बनाती है। इस प्रकार भगवान गणेश को विदाई देने का यह क्षण पृथ्वी को वापस देने का पवित्र संकल्प बन जाता है। इन मूर्तियों के निर्माण से सामाजिक-आर्थिक लाभ भी होता है। गौमय गणेश अपनाने से भक्त सीधे गौशालाओं की आर्थिक मदद करते हैं, गौ आधारित उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहन मिलता है और गौरक्षा, गौ संवर्धन जैसे परियोजनाएं मजबूत होती हैं। ग्रामीण कारीगरों, महिला स्वयं सहायता समूहों और किसानों को रोजगार मिलता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और विदेशी एवं कृत्रिम सामग्री पर निर्भरता घटती है। आध्यात्मिक दृष्टि से, त्योहार के दौरान घर में गौमय गणेशजी की उपस्थिति से भगवान गणेश और गौ माता दोनों के आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। गोबर के साथ मिश्रित प्राकृतिक औषधीय पौधों की सुगंध सात्विक वातावरण उत्पन्न करती है, जो ध्यान, सकारात्मकता और घर में सामंजस्य बढ़ाती है। इस गणेश चतुर्थी, गौमय गणेश को अपने घर लाकर, हम केवल विघ्नहर्ता की पूजा नहीं करते, बल्कि जीवन के तत्व — पानी, मिट्टी और सभी जीवित सृष्टि का भी सम्मान करते हैं। एक ही कार्य से हम धरती की रक्षा करते हैं, परंपराओं को संजोते हैं और मनुष्य एवं गौ के पवित्र बंधन को मजबूत बनाते हैं। जी.सी.सी.आई द्वारा व्यक्तियों, परिवारों, समाज, शैक्षणिक संस्थानों और गणेश मंडलों से इस इको-फ्रेंडली उत्सव में जुड़ने का आह्वान किया गया है। “गणपति बप्पा मोरया” के जयघोष के साथ एक संकल्प भी गूंजे — नदियों की रक्षा, गौ माता का सम्मान और प्रकृति के साथ समरस जीवन जीने का संकल्प लें। अधिक जानकारी के लिए जी.सी.सी.आई के जनरल सेक्रेटरी श्री मित्तलभाई खेताणी और तेजस चॉटलिया से मोबाइल नंबर 94269 18900 पर संपर्क करें।

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