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दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आवारा कुत्तों की पकड़:चुनौतियाँ और वास्तविकता

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में दो महीने के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़ने का आदेश दिया है, लेकिन जमीनी हकीकत में यह कार्य ‘मिशन इम्पॉसिबल’ जैसा है। दिल्ली में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्तों के लिए न तो पर्याप्त आश्रय स्थल हैं, न सटीक गणना, न प्रशिक्षित कर्मचारी, और न ही आवश्यक फंड। मौजूदा 20 एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) केंद्र केवल नसबंदी के बाद कुत्तों को 10 दिन तक रख पाते हैं, जिसके बाद उन्हें पुनः छोड़ दिया जाता है। इन केंद्रों को स्थायी शेल्टर में बदलना लगभग असंभव है। एमसीडी के अधिकारियों के अनुसार, सभी केंद्रों को आश्रय में बदल भी दिया जाए तो मुश्किल से 3,500-4,000 कुत्तों के लिए ही जगह बनेगी, यानी 96% कुत्तों का कोई ठिकाना नहीं होगा। आखिरी बार 2009 में गिनती हुई थी, तब 5.6 लाख कुत्ते दर्ज हुए थे, जबकि अब अनुमान 10 लाख का है। बिना सटीक आंकड़ों के योजना बनाना कठिन है। वित्तीय दृष्टि से यह कार्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। विशेषज्ञों के अनुसार 1,000-2,000 केंद्र बनाने, उनका रखरखाव करने और सालाना भोजन की व्यवस्था के लिए लगभग 10,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जो दिल्ली सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा नसबंदी के दौरान प्रत्येक कुत्ते को कम से कम 12 वर्ग फुट और शेल्टर में 40-45 वर्ग फुट जगह चाहिए, जिसके लिए सैकड़ों एकड़ जमीन और हजारों बाड़ों की जरूरत होगी। कुत्तों को पकड़ने के लिए भी सैकड़ों प्रशिक्षित कर्मचारियों, वाहनों और क्वारंटाइन यूनिट की आवश्यकता है, जो वर्तमान में एमसीडी के पास नहीं है। ‘खतरनाक’ कुत्तों की पहचान और उन्हें पकड़ना भी कठिन कार्य है। पशु कल्याण संगठनों और विशेषज्ञों ने इस आदेश को अव्यवहारिक और अमानवीय बताया है, साथ ही भीड़भाड़ वाले आश्रयों में बीमारियां फैलने और कुत्तों की मौत का खतरा जताया है। पिछले सात साल में एमसीडी ने 7 लाख कुत्तों की नसबंदी का दावा किया है, लेकिन कार्यकर्ता इन आंकड़ों पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि नसबंदी की दर 70% से अधिक न होने के कारण कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।

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