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गाय गौशाला – पिंजरापोल की नहीं, घर-आंगन की शोभा है।

हिंदू धर्म में गाय को अत्यंत पवित्र माना जाता है। गाय को ‘लक्ष्मी’ का स्वरूप माना जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि गाय घर में सुख, समृद्धि और सकारात्मकता लाती है। गाय की रक्षा करना और उसकी सेवा करना एक महान पुण्य का कार्य माना जाता है। गाय का दूध अत्यंत पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है। गाय का दूध, छाछ, दही, घी – पंचगव्य अत्यंत उपयोगी हैं। गाय का दूध कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन्स का उत्तम स्रोत है, जो शरीर के लिए बहुत लाभकारी है और कई बीमारियों से बचाव करता है।

गाय कृषि कार्यों में भी सहायक होती है। गाय के गोबर का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है, जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के बढ़ते उपयोग को देखते हुए बायोगैस अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती है। गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग बायोगैस संयंत्र में किया जा सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों को अत्यंत सस्ती ऊर्जा प्राप्त हो सकती है। इस कार्य से गोपालकों की आय में वृद्धि हो सकती है। गाय का गौमूत्र भी औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।

आज राज्य की पिंजरापोल और गौशालाएं अधिक पशुओं के बोझ से दब रही हैं, जिससे अच्छे पशुओं को भी पिंजरापोल में रहना पड़ रहा है। ऐसे में गाय को गौशाला और पिंजरापोल से निकालकर घर-आंगन तक लाने का प्रयास सिर्फ गरीबों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे गांव के लिए भी आशीर्वाद स्वरूप सिद्ध होगा। जिन गांवों में गौचर भूमि विकसित है, वहां यदि गायें दी जाएं तो चारे की समस्या नहीं रहेगी और आर्थिक रूप से भी गाय पालना संभव हो सकेगा।

  • डॉ. वल्लभभाई कथीरिया
    (मो. 9099377577)
    पूर्व केंद्रीय मंत्री,
    पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय कामधेनु आयोग, भारत सरकार।
    अध्यक्ष: ग्लोबल कन्फेडरेशन ऑफ काउ सेंटरिक इंस्टीट्यूशंस (GCCI)

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