वैदिक होली महात्म्य

Blog

GCCI और किसान गौशाला के संयुक्त उपक्रम द्वारा गोमय रंग से वैदिक होली मनाई गई।

हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना गया है। गाय के गोबर में लक्ष्मीजी का वास होता है। आज भी भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में गाय के सूखे गोबर का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है। बड़े पैमाने पर गोबर एकत्र कर बायोगैस का उत्पादन किया जाता है, जिसे बिजली उत्पादन में भी प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, गाय के गोबर से होली के रंग भी बनाए जा सकते हैं, जो पूरी तरह से रासायनिक मुक्त होते हैं। सामान्यतः होली के त्योहार में विभिन्न प्रकार के रासायनिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो न केवल शरीर और त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं। रासायनिक रंगों के कारण जल स्रोत भी दूषित हो सकते हैं। ऐसे रंगों में कई हानिकारक तत्व होते हैं। उदाहरण के लिए, लाल रंग में मौजूद मरक्यूरी सल्फेट त्वचा के कैंसर का कारण बन सकता है, सिल्वर रंग में एल्यूमिनियम ब्रोमाइड कैंसरकारी होता है और काले रंग में मौजूद लेड ऑक्साइड आंखों को नुकसान पहुंचाता है।

यदि इन रासायनिक रंगों के स्थान पर गोबर से बने प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाए, तो यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा। घर पर ही गोमय रंग बनाए जा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले गाय का सूखा गोबर लें और उसे बारीक छलनी से छान लें। इसके बाद उसमें तरल रूप में उपलब्ध खाद्य रंग (फूड कलर) मिलाएं और गोबर को अच्छी तरह मसलकर मिश्रण तैयार करें। इसमें मनपसंद सुगंधित पदार्थ जैसे चंदन, सुगंध आदि मिलाकर रंग तैयार किया जा सकता है। यदि फूड कलर का उपयोग न करना हो, तो प्राकृतिक वस्तुओं से रंग बनाए जा सकते हैं। पीला रंग गोबर में हल्दी मिलाकर, केसरी रंग केसूड़े के फूलों से, गुलाबी रंग गुलाब की पंखुड़ियों से, जो सौम्यता और सुगंध भी प्रदान करता है, तथा लाल रंग चुकंदर को क्रश कर मिलाने से प्राप्त किया जा सकता है।

ये सभी रंग पूरी तरह से प्राकृतिक होते हैं और किसी भी प्रकार से प्रकृति और मानव स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इन रंगों से बच्चे और परिवार के साथ होली खेलने का आनंद लिया जा सकता है, साथ ही प्रकृति संरक्षण और गौ महात्म्य को भी बढ़ावा मिलता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. वल्लभभाई कथीरिया के मार्गदर्शन में GCCI और चंद्रेशभाई पटेल किसान गौशाला द्वारा वैदिक होली और धूलिवंदन का आयोजन किया गया।

वैदिक होली को आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है, साथ ही यह जीवन और प्रकृति के नवीनीकरण का भी द्योतक है। असत्य पर सत्य की विजय के रूप में भी वैदिक होली मनाई जाती है। इस दिन लोगों में एकता और समरसता बनी रहे, यही इसका मुख्य उद्देश्य होता है। इसे वसंत ऋतु की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है, जब प्रकृति और जीवन दोनों का नवीनीकरण होता है। इसीलिए सनातन धर्म की संस्कृति में वैदिक होली को अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *