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“डॉक्टर अर्थात सेवा, विज्ञान और संस्कार का त्रिवेणी संगम” – डॉ. वल्लभभाई कथीरिया

डॉक्टर्स डे के शुभ अवसर पर मैं संपूर्ण चिकित्सक समाज को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। यह दिन केवल एक पेशे का सम्मान नहीं है, बल्कि एक पवित्र और महान धर्म का उत्सव है। ऐसा धर्म जिसमें डॉक्टर प्रतिदिन मानवता की सेवा हेतु अपना सर्वस्व समर्पित करता है। डॉक्टर केवल रोगों का उपचार करने वाला व्यक्ति नहीं है, वह समाज को स्वस्थ और मनोबल से परिपूर्ण बनाने वाला एक मानवदूत होता है। मेरे जीवन की शुरुआत अहमदाबाद सिविल अस्पताल और बी.जे. मेडिकल कॉलेज से एक सर्जन के रूप में हुई। तभी मैंने समझा कि उपचार केवल दवाइयों से नहीं होता, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव, मानवीय सहानुभूति और समर्पित सेवा भावना से होता है। शस्त्र चिकित्सा शिविर, गरीब मरीजों के लिए स्वास्थ्य जांच, गांवों में चिकित्सा सेवा—ये मेरे लिए केवल डॉक्टरी नहीं बल्कि दिव्य कर्म था। मेरे चिकित्सकीय जीवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। संघ ने मुझमें अनुशासन, देशभक्ति और नि:स्वार्थ सेवा की भावना जागृत की। एक स्वयंसेवक डॉक्टर के लिए क्लिनिक केवल इलाज का स्थान नहीं होता, वह सेवा यज्ञ का यज्ञकुंड बनता है। भूकंप हो या बाढ़, रक्तदान शिविर हो या स्वास्थ्य जागरूकता यात्रा—मैं हर कार्य में संघ के संस्कारों को अपनाकर सेवाकार्य से जुड़ा रहा। मेरा मानना है कि भारत की औषधीय परंपरा—पंचगव्य चिकित्सा, गौ आधारित आयुर्वेद, योग, प्राणायाम और नैतिक जीवनशैली—को आधुनिक विज्ञान से जोड़ें तो भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष के रूप में मैंने गौ आधारित औषधियों, प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता और जीवनशैली को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया। कोविड महामारी ने सिद्ध कर दिया कि रोग निवारण के लिए प्राचीन संस्कृति आधारित जीवनशैली ही सर्वोत्तम उपाय है। डॉक्टर केवल मरीज के शरीर का उपचार नहीं करता, वह राष्ट्र का आरोग्य रक्षक होता है। गांवों में, पहाड़ी इलाकों में, स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों में और शिशु मृत्यु दर को घटाने तक डॉक्टर का योगदान अमूल्य है। आज भी डॉक्टर स्वयंसेवक की तरह भूकंप, चक्रवात और महामारी में आगे आकर सेवा करते हैं। मैं उन्हें वंदन करता हूँ। मैं युवाओं से विशेष रूप से कहना चाहता हूँ कि डॉक्टर बनना केवल डिग्री लेकर पैसा कमाने का साधन नहीं है। डॉक्टर का सफेद एप्रन सेवा और संस्कार का प्रतीक है। आपका ज्ञान केवल भौतिक नहीं, बल्कि करुणा, सहानुभूति और मानवता से भरा होना चाहिए। आज भी भारत के कई गांव ऐसे हैं जहां एक डॉक्टर की नज़र, एक नि:शुल्क दवा और एक संवेदनशील उपचार किसी का जीवन बदल सकता है। आज “डॉक्टर्स डे” के इस पावन दिन पर मैं उन सभी चिकित्सकों को नमन करता हूँ जो नि:स्वार्थ भाव से मानवता की सेवा में समर्पित हैं। आप सब आशीर्वाद स्वरूप बनें। आपकी दवा के साथ-साथ आपके स्वभाव से भी लोग स्वस्थ हों, ऐसी प्रार्थना करता हूँ। जय हिंद। जय गौ माता। जय आरोग्य भारती।

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